वांछित मन्त्र चुनें

ऋजी॑ते॒ परि॑ वृङ्धि॒ नोऽश्मा॑ भवतु नस्त॒नूः। सोमो॒ अधि॑ ब्रवीतु॒ नोऽदि॑तिः॒ शर्म॑ यच्छतु ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛjīte pari vṛṅdhi no śmā bhavatu nas tanūḥ | somo adhi bravītu no ditiḥ śarma yacchatu ||

पद पाठ

ऋजी॑ते। परि॑। वृ॒ङ्धि॒। नः॒। अश्मा॑। भ॒व॒तु॒। नः॒। त॒नूः। सोमः॑। अधि॑। ब्र॒वी॒तु॒। नः॒। अदि॑तिः। शर्म॑। य॒च्छ॒तु॒ ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:75» मन्त्र:12 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:12


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को किससे कैसे शरीर करने चाहियें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् राजन् ! जो आप (ऋजीते) सीधे चलते हो वह (नः) हम लोगों को (परि, वृङ्धि) सर्व प्रकार वृद्धि देओ और (सोमः) जो ओषधियों का रस निकालनेवाला विद्वान् जैसे (नः) हम लोगों का (तनूः) शरीर (अश्मा) पत्थर के समान दृढ़ (भवतु) हो वैसा (अधि, ब्रवीतु) ऊपर ऊपर उपदेश करे और (अदितिः) माता के समान भूमि (नः) हम लोगों के लिये (शर्म) सुख वा घर (यच्छतु) देवे ॥१२॥
भावार्थभाषाः - राजा ऐसा प्रयत्न करे जैसे दीर्घ ब्रह्मचर्य्य से, विषायसक्ति के त्याग से और व्यायाम से क्षत्रियों के शरीर पाषाण के तुल्य कठिन हों और उपदेशक भी सबको ऐसा ही उपदेश करें, जिससे सब दृढ़ शरीर आत्मावाले हों ॥१२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः केन कीदृशानि शरीराणि कर्त्तव्यानीत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् राजन् ! यो भवानृजीते स नः परि वृङ्धि सोमो यथा नोऽस्माकं तनूरश्मेव भवतु तथाऽधि ब्रवीतु, अदितिर्नः शर्म यच्छतु ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋजीते) ऋजु गच्छति (परि) सर्वतः (वृङ्धि) वर्धय (नः) अस्मान् (अश्मा) पाषाणवद् दृढम् (भवतु) (नः) अस्माकम् (तनूः) शरीरम् (सोमः) यः सुनोति स विद्वान् (अधि) उपरि (ब्रवीतु) उपदिशतु (नः) अस्मानस्मभ्यं वा (अदितिः) मातेव भूमिः (शर्म) सुखं गृहं वा (यच्छतु) ददातु ॥१२॥
भावार्थभाषाः - राजैव प्रयतेत यथा दीर्घब्रह्मचर्य्येण विषयासक्तित्यागेन व्यायामेन च क्षत्रियाणां शरीराणि पाषाणवत्कठिनानि स्युरुपदेशकाश्च सर्वानेवमेवोपदिशेयुर्येन सर्वे दृढशरीरात्मानो भवेयुः ॥१२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने असा प्रयत्न करावा की, दीर्घ ब्रह्मचर्य, विषयासक्तीचा संग व व्यायाम करून क्षत्रियांची शरीरे पाषाणाप्रमाणे मजबूत व्हावीत व उपदेशकानेही सर्वांना असा उपदेश करावा की ज्यामुळे सर्वजण दृढ शरीर व आत्मायुक्त व्हावेत. ॥ १२ ॥